पिथौरागढ़, (भाषा) उत्तराखंड सरकार को एक अध्ययन रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वह राज्य की कमजोर ‘राजी’ जनजाति को सशक्त बनाने के लिए उन्हें कृषि भूमि देने समेत अन्य विशेष प्रयास करे। इस जनजाति के लोग अब भी लगभग आदिम परिस्थितियों में रहते हैं, लेकिन इनकी संख्या अब घट रही है। .
ग्रामीण योजना और कार्रवाई संघ (अर्पण) नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने रोजा लक्जमबर्ग स्टिफ्टंग की दक्षिण एशियाई इकाई के सहयोग से जनजाति की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कमजोरियों को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया और इस जनजाति के लोगों को सशक्त बनाने के कई सुझाव भी दिए ताकि वे सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।.
राजी जनजाति को ‘बॉट थो’ या ‘बन रावत’ के नाम से भी जाना जाता है, इस जनजाति के लोग पिथौरागढ़, चंपावत और उधम सिंह नगर जिलों के सुदूर गांवों में रहते हैं।
तीन जिलों के 11 गांवों में फैले कुल 249 राजी जनजाति परिवारों की कुल आबादी केवल 1,075 है।
ग्रामीण योजना और कार्रवाई संघ (अर्पण) की प्रमुख रेणु ठाकुर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सबसे अधिक संख्या में राजी जनजाति के लोग पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, कनालीछीना और डीडीहाट ब्लॉक के नौ गांवों में रहते हैं, इसके बाद चंपावत और उधम सिंह नगर जिले हैं, जहां राजी समुदाय का एक-एक गांव स्थित है। ’’
रेणु ठाकुर ने राजी जनजाति के गांवों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने का सुझाव दिया ताकि उन्हें पूर्ण सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा सके।
उन्होंने कहा, ‘‘राजी जनजाति के लोगों को उनकी क्रय शक्ति सुधारने के लिए नियमित रोजगार दिया जाना चाहिए। उनके मौजूदा कौशल को प्रशिक्षण देकर बढ़ाने के साथ उन्हें सिंचाई तथा मिट्टी परीक्षण जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। ’’